Saturday 12 September 2015

शिव महापुराणों में अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विशेष उल्लेख लिखा मिलता है। "

ॐ नमः शिवायः, 
शिव महापुराणों में अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विशेष उल्लेख लिखा मिलता है। " महामृत्युंजय मंत्र " भगवान शिव को अति शीघ्र ही प्रसन्न करने का मंत्र होता है। इस मंत्र के द्वारा कोई भी मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता हैं। इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य मौत के मुख में जाते जाते बच जाते है। मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अदभुद कृपा से जीवन पा लेते है। अधिक समय की बिमारी, दुर्घटना, अनिष्ठ गृहों के दुष्प्रभावों को दूर करने, मृत्यु को टालने के लिए इस महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख बार जाप करने का विधान होता है। यदि मनुष्य स्वयं महामृत्युंजय मंत्र का जप करने में सक्षम न हो। तो किसी योग्य पंडित से या अन्य किसी मनुष्य से महामृत्युंजय मंत्र का जाप कराया जा सकता है। सागर मंथन के बहुप्रचलित आख्यान में देवासुर के समय शुक्राचार्य ने अपनी यज्ञशाला में इसी महामृत्युंजय मंत्र के अनुष्ठानों का प्रयोग करके देवताओं द्वारा मारे गए। उन दैत्यों को पुनः जीवित कर दिया था इसलिए इस मंत्र को "मृतसंजीवनी" के नाम से भी जाना जाता है। इस मंत्र के साथ साथ "सोमवती अमावस्या" जो स्त्रियों का प्रमुख त्यौहार है। वह भी करना चाहिए। इस सोमवती (सोमवार अमावस्या) सोमवार भगवान् शिव और चन्द्रमा का दिन होता है। इस व्रत को सोमवती अमावस्या सोमवार को ही करना चाहिए। यह व्रत गंगा स्नान व दान पर्वों में सर्व श्रेष्ठ माना जाता है। इस व्रत वाले दिन मौन रहकर यह व्रत करने से और भगवान् शिव का ध्यान करने से सहस्त्र गौदान का पुण्य मिलता है। इस दिन पीपल के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करते हुए। पीपल और भगवान् शिव की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद 108 फलों को ब्राह्मणों को दान देने से सर्व संपन्नता घर में आती है। और अंत में ब्राह्मणों को धन की दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

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