Saturday 22 August 2015

[[ महामृत्युंजय धाम ]] ॐ नमः शिवायः,

शिव महापुराण में बताया गया हैं, कि भैरव को परमात्मा शिव शंकर का पूर्ण रूप बताया गया है। एक बार की बात हैं, कि भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर भगवान ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे। तब वहां तेज - पुंज के मध्य एक पुरुषाकृति दिखलाई पड़ी। उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने उनसे कहा - हे चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो। अत: तुम मेरी शरण में आओ। ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया। उन्होंने उस पुरुषाकृति से कहा- काल की भांति शोभित होने के कारण आप साक्षात कालराज हैं। भीषण होने से भैरव हैं। भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया। ब्रह्मा का पांचवां सिर काटने के कारण भैरव ब्रह्महत्या के पाप से दोषी हो गए। तब काशी में भैरव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल गई। काशीवासियों के लिए भैरव की भक्ति अनिवार्य बताई गई है। वागभट्ट के मतानुसार , "जो मनुष्य पारद शिवलिंग का भक्ति सहित पूजन करता है, उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है। पारद शिवलिंग का दर्शन महापुण्य माना जाता है। इसके दर्शन से सैकड़ो अश्वमेध यज्ञों के करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है। करोडो गोदान करने एवं हजारों स्वर्ण मुद्राओं के दान करने से पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। 
महामृत्युंजय धाम's photo.

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