Wednesday 13 May 2015

4 कहानियां, इन्हें पढ़कर बदल सकती है किसी की भी सोच

महात्मा ईसा सुबह भ्रमण के लिए जा रहे थे। उनके साथ उनके शिष्य भी थे। हर तरफ प्राकृतिक सौंदर्य की छटा छाई हुई थी। सुबह सूरज की किरणों का साथ पाकर घास पर पड़ी ओंस की बूंदें मोतियों के तरह चमक रही थी। पास के बगीचे में लिली के फूल खिल रहे थे। पक्षियो की कलरव ध्वनि मन में संगीत की मिठास घोल रही थी। ऐसा दृश्य देखकर ईसा के एक शिष्य ने पूछा- भगवन।
जीवन में सुख और सौंदर्य का रहस्य क्या है? प्रश्न के उत्तर में ईसा ने हंसते हुए कहा- देख रहे हो इन लिली के फूलों को। ये सम्राट सोलोमन से भी ज्यादा सुखी और सुंंदर है, क्योंकि न इन्हें बीते कल का दुख है और न आने वाले कल की चिंता। ये तो बस वर्तमान में अपनी सुगंध भरी मुस्कुराहट बिखेर रहे हैं। जो इन फूलों की तरह भूत और भविष्य की चिंता किए बिना जीवन को जीवन जीता है। वर्तमान मे सत्कर्मों की सुगंध बिखेरता है, वह स्वयं ही अपने जीवन के सुख और सौंदर्य के दरवाजे खोलता है।
इतिहास बताता है कि विश्व विजेता बनने के कगार तक पहुंचने वाले वीर नेपोलियन ने अपनी युवावस्था में लगातार आठ वर्ष तक लेखक बनने की कोशिश की। हर बार उसे असफलता हाथ लगी, उसने रणक्षेत्र में अपनी प्रतिभा आजमाने का निश्चय किया। एक साधारण सैनिक से जीवन आरंभ कर अपनी क्षमता, प्रतिभा व साहस के बल पर वह अपने देश का ही नहीं, अन्य देशों का भी भाग्य विधाता बन गया। किसी को भी असफलता मिलने पर निराश होकर बैठना नहीं चाहिए। किसी न किसी क्षेत्र में सफलता मिलेगी जरूर। बस प्रयासरत रहना चाहिए।
भगवान बुद्ध का अंत समय आ चुका था। सभी शिष्य एकत्र हुए। अपने शिष्यों के लिए उनका अंतिम संदेश था। हे मित्रों। जब तक तुम सभी संयमी होकर मित्रभाव से रहोगे, एक साथ मिल बांट कर खाओगे और धर्म के रास्ते पर मिल कर चलोगे। तब तक बड़ी से बड़ी विपत्ति आने पर भी तुम नहीं हारोगे, लेकिन जिस दिन तुम संगठित न होकर बिखर कर रहने लगोगे, पराजित हो जाओगे। संगठन में अपार शक्ति है।
रवींद्रनाथ ठाकुर के पिता नौकरी के लिए बच्चों को शिक्षा दिलाने के पक्ष में कभी नहीं रहे। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई से असंतुष्ट होकर अपने पुत्र रवींद्रनाथ की पढ़ाई बंद करवा दी। वे जैसी शिक्षा पुत्र को दिलाना चाहते उसे वैसी ही शिक्षा मिली और उसी का फल था कि रवींद्र ठाकुर विश्व में महान हुए। उन्होने नोबेल पुरस्कार और ख्याति मिली।

No comments:

Post a Comment