इस जगत में ऐसा कोई नही है जो भगवान शिव पर आश्रित न हो, भगवान ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र व अन्य देवी देवता ये सभी भगवान शिव के ही आधीन (सहयोगी) हैं। जिनसे की यह सारा ब्राह्माण है। इस जगत में ऐसा कोई नही है जो भगवान शिव पर आश्रित न हो, भगवान ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र व अन्य देवी देवता ये सभी भगवान शिव के ही आधीन (सहयोगी) हैं। जिनसे की यह सारा ब्रह्माण्ड विस्तृत हो रहा है। इन तीनों से शिव जी की पाँच और सहयोगी (मूर्तियां) है, तथा उनसे सारा जगत व्याप्त हो रहा है, पुरे संसार में और ऐसा कुछ नहीं, जहाँ वह व्याप्त न हों। ईशान, पुरुष, घोर, वामदेव, सद्योजगत - यह भगवान् शिव की पाँच मूर्तियां हैं, जिनसे पूरा जगत परिचित है। इस सारे जगत में परमात्मा शिव व्याप्त है, सर्वत्र शिव ही अपनी मूर्तियों से अधिष्ठित हैं। उन अभिन्नात्मा से कुछ भी छिपा हुआ नहीं है। वह सब कुछ जान जाते है। उनसे कोई भी कुछ नही छिपा सकता है। ईशान उनकी सर्वश्रेष्ठ पदवी है। वही प्रकृति होकर क्षेत्र में स्थित हैं। फिर उन्हीं मूर्तिमान स्थाणु की मूर्ति तत्पुरुष नाम वाली गुणाश्रित हो भोग करती है, तथा जिनका अव्यक्त में अधिष्ठान है। वही धर्मादि आठ अंगो में सयुंक्त होकर शिवजी के बुद्धि-तत्व में अत्यन्त पुजित होकर अघोर-मूर्ति से स्थित रहती है, तथा विधाता और वामदेव नामक मूर्ति अहंकार में स्थित रहने वाली मूर्ति है। इसी प्रकार सद्योजगत मूर्ति भी अमित तेजस्वी और बुद्धिमान मन में स्थित रहने वाली मूर्ति कही जाती है।
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